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मकर सक्रांति के साथ झारखंड में धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है टुसू पर्व
14-01-2023 12:48:52 IST
न्यूज़ 4 डेस्क, न्यूज़ 4 डेस्क
रांची डेस्क ||
देशभर में मकर सक्रांति का त्योहार मनाया जा रहा है, तो झारखंड में इस त्योहार का साथ- साथ मनाया जा रहा है टुसू पर्व। इस पर्व का झारखंड में खास महत्व है, यह सर्दी में फसल काटने के बाद मनाया जाने वाला पर्व है।टूसू का शाब्दिक अर्थ कुंवारी है, इस त्योहार के पीछे मान्यता और कहानी है। पर्व का झारखंड में विशेष महत्व है। पढ़ें इस पर्व का इतिहास इससे जुड़ी मान्यता।
पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा इस पर्व का सबसे बड़ा आधार
झारखंड में ज्यादातर पर्व त्योहार प्रकृति से जुड़े हैं। इस पर्व के संबंध में ज्यादा लिखित दस्तावेज मौजूद नहीं है। पीढ़ियों से जो परंपरा और कहानी चली आ रही है वही एक बड़ा आधार है। इस त्योहार के दिन पूरे कूड़मी, आदिवासी समुदाय द्वारा अपने नाच-गानों और मकर संक्रांति पर सुबह नदी में स्नान कर उगते सूरज की प्रार्थना करके टुसू की पूजा की करते हैं। इस त्योहार के माध्यम से साल की नयी शुरुआत और बेहतरी की कामना की जाती है।
इन इलाकों मे धूमधाम से मानाया जाता है त्योहार
झारखंड के कई इलाकों में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। खासकर झारखंड के दक्षिण पूर्व इलाको में टुसू पर्व का खास महत्व है। इन इलाकों में मुख्य रूप से रांची, खूंटी, सरायकेला-खरसावां, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिम सिंहभूम, रामगढ़, बोकारो, धनबाद जिलों और पंचपरना क्षेत्र शामिल हैं। झारखंड के साथ- साथ पश्चिम बंगाल के पुरुलिया, मिदनापुर व बांकुड़ा जिलों, ओड़िशा के क्योंझर, मयूरभंज, बारीपदा जिलों में भी इसे धूमधाम से मनाया जाता है।
क्या है इस पर्व के पीछे की मान्यता और कहानी
अघन संक्रांति (15 दिसंबर) से लेकर मकर संक्रांति (14 जनवरी) तक इसे कुंवारी कन्याओं के द्वारा इसे मनाया जाता है। इस पर्व की खास कहानी है, टुसू एक गरीब कुरमी किसान की बेटी थी। उसकी सुदंरता की चर्चा दूर- दूर तक थी राजा के दरबार तक भी यह खबर फैली। राजा ने इस कन्या को प्राप्त करने के लिए षड्यंत्र रचा। राज्य में भीषण अकाल का लाभ लेते हुए राजा ने ऐलान किया कि किसानों को लगान देना ही होगा टुसू ने ही किसान समुदाय का एक संगठन खड़ा किया। राजा के सैनिकों और किसानों के बीच भीषण युद्ध हुआ। टुसू को जब सैनिक गिरफ्तार करके राजा के पास ले जाने के लिए पहुंचे तो उशने जल-समाधि लेकर शहीद हो जाने का फैसला लिया और उफनती नदी में कूद गयी। इस दिन टुसू की इस कुरबानी की याद किया जाता है। टुसू कुंवारी कन्या थी, इसलिए इस पर्व में कुंवारी लड़कियों का खास महत्व है।
इस पर्व को तीन नामों से जाना जाता है
घर की कुंवारी कन्याएं प्रतिदिन संध्या समय में टुसू की पूजा करती हैं. गांव की कुंवारी कन्याएं टुसू की मूर्ति बनाती हैं। इसकी सजावट की जाती है, फिर धूप, दीप के साथ टुसू की पूजा होती है। टुसू पर्व मुख्य रूपसे तीन नामों से जाना जाता है. पहला टुसु परब, मकर परब और पूस परब। इसके अलावा बांउड़ी और आखाईन जातरा का भी इस पर्व के साथ विशेष महत्व है या यूं कहें कि एक दूसरे से जुड़े हैं, बांऊड़ी के दूसरा दिन या मकर संक्रांति के दूसरे दिन "आखाईन जातरा" मनाया जाता है।
खेती के महत्व से जुड़ा है त्योहार
इसका खास महत्व है इस दिन खेती का काम खत्म होता है साथ ही खेती की नयी शुरुआत भी इसी दिन से होती है। बांउड़ी तक प्रायः खलिहान का कार्य समाप्त कर आखाईन जातरा के दिन कृषि कार्य का प्रारंभ मकर संक्रांति के दिन होता है. इस दिन नया घर बनाने के लिए नींव रखना भी बेहद शुभ माना जाता है।
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